प्रिय दोस्तों, इस पोस्ट में हम हिमाचल प्रदेश के विभिन्न लोक नृत्यों के बारे में चर्चा करेंगे। हम उनकी विशेष विशेषताओं के साथ लगभग 10 लोक नृत्य सीखेंगे। ये लोक नृत्य मुख्य रूप से लाहौल, सिरमौर, चंबा, किन्नौर, कुल्लू और मंडी जिलों से हैं।
जातरू कायड नृत्य
- त्योहारों के अवसर पर आयोजित लोक नृत्य में से जातरू कायड सबसे लोक प्रिय है |
- इसमें त्योहारों से सम्बंधित गीत गाये जाते हैं।
- इस नृत्य में नर्तकों की संख्या सैकड़ो तक पहुंच जाती है।
शन तथा शाबू नृत्य
- यह लाहौल घाटी का लोक प्रिय नृत्य है। ये नृत्य बुद्ध की याद में गोम्पा नाचे जाते है।
- शन का मतलब बुध की याद से है।
- अतः बुद्ध की स्तुतियों पर आधारित नृत्य शन नृत्य कहलाते है।
- यह नृत्य जातीय जनित्या करती है , जो फसल काटने के पश्चात किया जाता है।
दलशोन और चोलम्बा नृत्य
- यह नृत्य रोपा घाटी में आयोजित किया जाता है। यह नृत्य सांप कुंडलित करते हुए किया जाता है।
- जब भी किसी शेर को मारा जाता है , तब चोलम्बा नृत्य किया जाता है।
- इस नृत्य में मरे हुए शेर की नाक में उसका चमड़ा और एक सोने का आभूषण डाला जाता है।
लालड़ी तथा घुघती नृत्य
- पहाड़ी स्वतन्त्र समाजो में स्त्री नृत्य परम्परा भी प्राप्त होती है। लालरी सबसे लोक प्रिय है.
- इस नृत्य में ढोल,नगाड़ो, शहनाई आदि का प्रयोग नहीं होता।
- ताल तथा लय ताली बजाकर ही पुरे किये जाते है।
- घुघति नृत्य में नर्तक अपने दोनों हाथो को दूसरे नर्तक के कंधो पर रखते हुए नाचता है।
- अगले 3 - 4 नर्तक घुघती गीत को गाते है और शेष उसे है।
कयांग नृत्य
इसके तीन रूप हैं ,- नागस क्यांग
- हेकड़ी कयांग
- शुना कयांग
- नागस क्यांग में सांप की गतिबिधियो का अनुकरण करते हुए खत्म हैं।
- हेकड़ी क्यांग रोमैंटिक अवसरों पर है।
- शुना कयांग तेज़ और धीमी लय में किया जाता है।
राक्षश नृत्य (छम्म )
- राक्षश नृत्य मुखौटा पहन कर नाचा है, मुखोटे तीन ,पांच, नौ की संख्या में होते हैं।
- यह नृत्य राक्षशो और दुरात्माओं से फसल की रक्षा लिए आयोजन है.
- छम्म एक प्रकार का नृत्य है जिसमे लामा ही नाचते है।
माला नृत्य
- हिमाचल प्रदेश का कायड माला नृत्य अत्यंत लोक प्रिय है।
- इसमें पारम्परिक वेशभूषा सुसज्जित नर्तक एक- दूसरे की बाजुओं कर X का चिन्ह बन जाता है।
नागमेन नृत्य
- यह नृत्य शरद्काल में सेप्टेम्बर मनाया जाता है।
- इसके दौरान ऊनी कपडे और चांदी के गहने पहने जाते है।
किन्नौरी नाटी
- कुल्लू , मण्डी , सिरमौर , चम्बा आदि क्षेत्रों नृत्य अनेक रूपों में प्रचलित है
- कुल्लू में इससे सिराजी नाटी कहा जाता है।
- इसमें गीत कुल्लू से तथा सुर ताल सिराजी से लिए जाते हैं।
- कत्थक नृत्य की भाँती इसके भी अनेक नाम हैं।
- यह नृत्य धीरे धीरे किया जाता हैं। यह तीन - तीन , चार चार रात्रि चलता है।
सवांगटेगी नृत्य
- दीपावली पर शेर या तेंदुओं के काष्ठ मुखोटे पहन कर शुरुआत की जाती है।
- इसमें जंगली जानवरो जैसा स्वच्छ नृत्य होता है.
- इसमें युद्धरत वीरों , आक्रमण कारियो ,मंदिर, स्तूपों आदि के द्रिश्य प्रस्तुत हैं।
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